आख़िरी दिन की तलाश

ख़ुदा ने क़ुरआन में कहा है कि लोगों मैं ने तुम्हारी ख़ातिर फ़लक बनाया फ़लक को तारों से चाँद सूरज से जगमगाया कि लोगों मैं ने तुम्हारी ख़ातिर ज़मीं बनाई ज़मीं के

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दाएरा

रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ बार-हा तोड़ चुका हूँ जिन को उन्हीं दीवारों से टकराता हूँ रोज़ बसते हैं कई शहर नए रोज़ धरती

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अलाव

रात-भर सर्द हवा चलती रही रात-भर हम ने अलाव तापा मैं ने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े मैं ने जेबों से

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कविताएँ : रुपेश चौरसिया

1. स्मृतियों के अवशेष अवचेतन में सोए रहते हैं पुरानी डायरी की सोंधी सुगंध से एकाएक उठ बैठती हैं अल्हड़ जवान स्मृतियां और ठहाके मारकर हंसती हैं जैसे एक बच्चा खिलखिला रहा

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कविताएँ : आलम आज़ाद

1. प्रेमिकाएं मैं किसी से कैसे प्रेम करूँ? लगभग मेरी सभी प्रेमिकाओं ने मुझे निराश किया है अब तक सूखे मौसम की तरह! आकाश भर प्रेम के बदले दुनिया भर की टूटी

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पहला सफ़ेद बाल

आज पहला सफ़ेद बाल  दिखा। कान के पास काले बालों के बीच से झाँकते इस पतले रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दिया। ऐसा लगा, जैसे वसन्त में वनश्री देखता घूम रहा

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कविताएँ : आसित आदित्य

1. तुम्हें सौगंध है, मेरे क़ातिल प्रेम करने के लिए नादान होना उतना ही है आवश्यक जितना कि जीवित रहने के लिए उम्मीद का होना। तुम्हारे खंजर से टपकते मेरे लहू की

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