सुलगती टहनी

प्रयाग : 1976 मुँह अँधेरे सीटी सुनाई देती है-घनी नींद में सुराख बनाती हुई-एक क्षण पता नहीं चलता, मैं कहाँ हूँ, किस जगह हूँ, कौन-सा समय है? आँखें खुलती हैं, तो ढेस-सा

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