जैसा समाज होगा वैसा परिवार

हम जानते हैं कि जब समाज अपनी प्रारंभिक अवस्था में था तो परिवार की शुरुआती अवधारणाएँ और परिणतियाँ अपने मूल व्यवहार में तमाम आडंबरों से रहित थीं। उनमें खुलापन, आजादी और यायावरी

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