एक औरत ताउम्र बाट जोहती है कि उसे किसी नाम से पुकारा जाए ऐसे कि नाम के आगे पीछे उग आएँ कई सारे नाम और वह अपना एक नाम भूल जाए। एक
जो जितने ज़्यादा लोगों का जितना ज़्यादा नुक़सान कर सके वो उतना ही बड़ा है। छोटा वो है जो किसी का नुक़सान न कर सके। उस हर बात में राजनीति है जहाँ
More(ये कविताएँ पहाड़ के दूर दराज क्षेत्रों के ऐसे लोकगीतों से प्रेरित हैं जिन्हें लोक कविताएँ कहना ज्यादा सही होगा पर ये उनके अनुवाद नहीं हैं।) 1. तुम्हें कहीं खोजना असंभव था
Moreयह लड़की जब उदास होगी तो क्या सोचेगी? आज नहीं कल नहीं बरसों बाद यह लड़की जब उदास होगी तो क्या सोचेगी भला? शायद वह सोचेगी उस प्रेम के बारे में जो
Moreकई दिनों बाद पति-पत्नी जब घर लौटे तो बग़ीचे के फूल किसी ने तोड़ लिए थे पति बेहद नाराज़ हुआ घर में घुसते ही सामान इधर-उधर फेंकने लगा चीख़-चीख़ कर गालियाँ देने
Moreइन दिनों झुंड में बैठकर जंतसार गाते हुए तुम्हारे पोथी-पतरा, वेद-पुराण को धता बताकर धर्म की चौखट लाँघ लिख रही हैं औरतें वे लिखती हैं प्रेम वे लिखती हैं विरह वे लिखती
Moreतिलक मार्ग थाने के सामने जो बिजली का एक बड़ा बक्स है उसके पीछे नाली पर बनी झुग्गी का वाक़या है यह चालीस के क़रीब उम्र का बाप सूखी साँवली लंबी-सी काया
Moreमैंने हारने के लिए यह लड़ाई शुरू नहीं की थी इन अभाव के दिनों में भी जितना खुश हुआ उतना पहले कभी नहीं कि इधर कर्ज़ में जीने की आदत मैंने कई
Moreजिसे भी प्यार करता हूँ महसूस करता हूँ कि मुझसे बड़ा हो गया है वह और पाता हूँ कि मैं दुनिया का सबसे छोटा आदमी हूँ।
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