घर पहुँचना

हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम

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घर

जहाँ बिल्ली को खदेड़ता दिख जाएगा खरगोश वहीं अपना घर बनाऊँगा वहीं शीत वसंत लाऊँगा वहीं लगाऊँगा सेब, नारंगी संतरा वहीं कामधेनु पोसूँगा वहीं कवियों, बुलाऊँगा तुम्हें और काव्य पाठ कराऊँगा जहाँ

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एक टूटता हुआ घर

एक टूटते हुए घर की चीखें दूर-दूर तक सुनी जाती हैं कान दिए लोग सुनते हैं चेहरे पर कोफ्त लपेटे नींद की गोलियाँ निगलने पर भी वह टूटता हुआ घर सारी-सारी रात

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