‘लेखक विद्वान हो न हो, आलोचक सदैव विद्वान होता है। विद्वान प्रायः भौंडी बेतुकी बात कह बैठता है। ऐसी बातों से साहित्य में स्थापनाएँ होती हैं। उस स्थापना की सड़ांध से वातावरण
मध्यकाल जिसे कहते हैं उसको दो संदर्भों में देखना चाहिए। साहित्य के इतिहास का काल विभाजन प्रायः समाज के इतिहास के काल विभाजन के आधार पर ही होता है। इसमें कभी-कभी विडंबनापूर्ण
Moreयदि ”प्रच्छन्नता का उद्घाटन,” जैसा कि आचार्य शुक्ल आचार्य शुक्ल ने कहा है: ”कवि-कर्म का प्रमुख अंग है” तो आलोचना-कर्म का वह अभिन्न अंग है। यह प्रच्छन्नता सभ्यता के आवरण निर्मित करते
More