फटा क्षण

एक फटे हुए क्षण में जूता सिलाने मैं चला सड़क चौड़ी थी पाँव पतले नंबर तीन वाले पेड़ सिकुड़ा खड़ा बूढ़ा बैठा जहाँ दिमाग़ में कुछ आता न था कमरा खुला दरियाँ

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मैं सोचने लगता हूँ

तेज रफ्तार से दौड़ती बसें, बसों के पीछे भागते लोग, बच्चे सम्हालती औरतें, सड़कों पर इतनी धूल उड़ती है कि मुझे कुछ दिखाई नहीं देता । मैं सोचने लगता हूँ । पुरखे

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