मैं फ़िलॉसफ़र नहीं हूँ

मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मैं लिख नहीं सकता, क्योंकि दिमाग में ख़यालात इतने बारीक आते हैं कि जिनको जाहिर करने के लिए मुझे भाषा नहीं मिलती। आप खुद

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नयी कविता एवं मेरी रचना प्रक्रिया

यह विषय मेरे लिए नया है। कोई सोच नहीं सकता कि वह किस तर्ज से लिखता है। आधुनिक काव्य की जो रचना-प्रक्रिया है उस पर निर्णय लेना पाठकों का कार्य है। आधुनिक

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अंधा युग — एक समीक्षा

स्वाधीनता-संघर्ष के बाद, दुनिया में एक ओर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ती गयी, तो दूसरी ओर, घर में सामाजिक ह्रास के चिह्न दिखाई देने लगे। इस सामाजिक ह्रास के कई लक्षणों में से

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मुक्तिबोध

भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का

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