अजायबघर

पृथ्वी कितनी छोटी थी जब हमारे पास मिलने की आकांक्षा थी। आकांक्षाएं  सिमटती रहीं और एक दिन बहुत दूर हो गए हमसे हमारे ही शहर। एक तरह का अजनबीपन बस गया है

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