जिसके गालों में टिप्पे पड़ते हैं

ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़दाँ अपना (ग़ालिब) ‘ज़िक्र परीवश का-’ जिसके गालों में टिप्पे पड़ते हैं जिसके दाँतों में बर्क़ रखी है

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