शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर
वे उतनी ही लड़ाकू थीं जितना कि उनका सेनापति वे अपनी ख़ूबसूरती से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक थीं अपने जूड़े में उन्होंने सरहुल और ईचा बा की जगह साहस का फूल खोंसा था
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