अनुभव

1970 की गर्मियों का प्रारंभ था। गंगा के मैदान में गर्मियों के बारे में सभी जानते हैं। यहाँ पर मौसम का विशेष कुछ तात्‍पर्य नहीं है सिवाय इसके कि एक लंबे अंतराल

More

अपरिचित

कोहरे की वजह से खिड़कियों के शीशे धुँधले पड़ गये थे। गाड़ी चालीस की रफ़्तार से सुनसान अँधेरे को चीरती चली जा रही थी। खिड़की से सिर सटाकर भी बाहर कुछ दिखाई

More

ठेस

खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं । इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन

More

अवांतर प्रसंग

उस पुरानी मेज के इर्द-गिर्द हम चार-पांच लोग बैठे बतिया रहे थे। बात सतही तौर पर राजनीति से शुरू होती थी और बाजार भावों पर आकर अटक जाती थी। आप जानते ही

More

रिश्ता

/

मैं कूर्सकी रेलवे स्टेशन पहुँचा जहाँ से ठीक नौ बजे सिम्फिरापोल्स्की एक्सप्रेस ट्रेन को छूटना था। टी.टी. ने मेरा टिकट देखा और मैं डिब्बे में घुस गया। वहाँ पहले से ही एक

More

शत्रु

ज्ञान को एक रात सोते समय भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिये और कहा, ‘‘ज्ञान, मैंने तुम्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर संसार में भेजा है। उठो, संसार का पुनर्निर्माण करो।’’ ज्ञान जाग पड़ा।

More

परियों की बातें

मैं अपने दोस्त के पास बैठा था। उस वक़्त मेरे दिमाग़ में सुक़्रात का एक ख़याल चक्कर लगा रहा था— क़ुदरत ने हमें दो कान दिये हैं और दो आंखें मगर ज़बान

More

अपने दुख मुझे दे दो

शादी की रात बिल्कुल वह न हुआ जो मदन ने सोचा था। जब चकली भाभी ने फुसला कर मदन को बीच वाले कमरे में धकेल दिया तो इंदू सामने शाल में लिपटी

More

बड़े दिन की पूर्व साँझ

मुझे नृत्य नहीं आता था। रुचि भी नहीं थी। मैंने ऐसा ही कहा था। वह बोला – आता मुझे भी नहीं है। मैंने सोचा बात खत्म है। उसने हाथ में पकड़ी मोमबत्ती

More

मरने से पहले

मरने से एक दिन पहले तक उसे अपनी मौत का कोई पूर्वाभास नहीं था। हाँ, थोड़ी खीझ और थकान थी, पर फिर भी वह अपनी जमीन के टुकड़े को लेकर तरह-तरह की

More
1 4 5 6 7 8 10