कोनों की एक ख़ास जगह
बनी रही जीवन में
वे देते रहे पनाह
चुप, उदासी, दुःख, अनमनेपन
आँसू, अवसाद और प्रेम को।
यूँ तो कोनों में कई बार रखी गयीं
बेमतलब की, गैरजरूरी चीजें
छिपाए गए घर के अटाले भी
जब-जब हुआ कुछ लापता
कोनों में झांका गया।
कभी कोने में कुछ पड़ा रहा
तो कभी कोना-कोना छाना गया
कोनों में सदैव रहा सहेजने का,
और ढँकने-ढाँकने का गुण
मन हो या घर
कोनों का होना सुकून है
कि लगातार उघड़ते जाते जीवन में
अब भी कुछ तो ऐसा है
जो ओझल है जमाने की नज़र से।
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डॉ. मालिनी गौतम
डॉ. मालिनी गौतम मूलतः झाबुआ, मध्यप्रदेश से हैं। आप इन दिनों मालिनी संतरामपुर के महाविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर के रूप में सेवरात हैं। अभी तक आपके दो कविता संग्रहबूँद-बूँद अहसास (गुजरात हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा अनुदानित), एक नदी जामुनी-सीप्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा एक ग़ज़ल संग्रहदर्द का कारवाँ,एक नवगीतसंग्रह चिल्लर सरीखे दिनप्रकाशित हो चुका है। आपको दो बार गुजरात साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष2016एवं2017) ,परम्परा ऋतुराज सम्मान (दिल्ली, 2015)वागीश्वरी पुरस्कार (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल, 2017)तथा जनकवि मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान(सरोज स्मृति न्यास ग्वालियर, 2019)*से नवाजा जा चुका है।अनुवाद के क्षेत्र में भी आपका योगदान उल्लेखनीय है। आपसे malini.gautam@yahoo.in पे बात की जा सकती है।