कुछ का व्यवहार बदल गया। कुछ का नहीं बदला। जिनसे उम्मीद थी, नहीं बदलेगा उनका बदल गया। जिनसे आशंका थी, नहीं बदला। जिन्हें कोयला मानता था हीरों की तरह चमक उठे। जिन्हें हीरा मानता था कोयलों की तरह काले निकले। सिर्फ अभी रुख बदला है, आँखें बदली हैं, रास्ता बदला है। अभी देखो क्या होता है, क्या क्या नहीं होता। अभी तुम सड़कों पर घसीटे जाओगे, अभी तुम घसिआरे पुकारे जाओगे अभी एक एक करके सभी खिड़कियाँ बंद होंगी और तब भी तुम अपनी खिड़की खुली रखोगे इस डर से कि जरा सी भी अपनी खिड़की बंद की तो बाहर से एक पत्थर एक घृणा का पत्थर एक हीनता का पत्थर एक प्रतिद्वंद्विता का पत्थर एक विस्मय का पत्थर एक मानवीय पत्थर एक पैशाचिक पत्थर एक दैवी पत्थर तुम्हारी खिड़की के शीशे तोड़ कर जाएगा और तुम पहले से अधिक विकृत नजर आओगे पहले से अधिक बिलखते बिसूरते नजर पड़ोगे जैसा कि तुम दिखना नहीं चाहते दिखाई पड़ोगे। यह कोई पहली बार नहीं है जब तुम्हें मार पड़ी है कम से कम तीन तो आज को मिला कर हो चुके मतलब है तीन बार मार। और ऐसी मार कि तीनों बार बिलबिला गया निराला की कविता याद आती है "जब कड़ी मारें पड़ीं, दिल हिल गया।"
श्रीकांत वर्मा (1931 – 1986) गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं. आप ‘मगध’ काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए.